अकाली दल ने की मजबूत विपक्ष की मांग और विपक्षी दलों से विवादास्पद कृषि विधेयकों के खिलाफ एकजुट लड़ाई का आह्वान किया
एनडीए से बाहर निकलते ही बगावती सुर अपनाते हुए अकाली दल ने एक मजबूत विपक्ष के लिए एकजुट होकर अन्य पार्टियों को साथ आने की मांग की. नए कृषि विधेयको के पास होने के बाद से ही अकाली दल इस लड़ाई में अग्रणी भूमिका निभा रहा है.
कांग्रेस के नेता जहा सदन में उपस्थित भी नहीं रहे वही अकाली दल के अपनी नेता से इस्तीफ़ा दिलवा कर NDA से अपने आप को अलग करने का कठोर फैंसला लेकर सभी को चोंका दिया. किसानो के नाम पर चल रही राजनीती में भाजपा और उनके सहयोगी दल को इस प्रकार के रवैये का अंदाजा नहीं रहा होगा.
अकाली दल के अनुसार इस विधेयक के परिणामस्वरूप देश में आर्थिक दुस्परिणाम देखने को मिलेंगे. किसानो के हितैषी के रूप में अपनी छवि को और मजबूत कर दिया. इस लड़ाई को आगे ले जाने में जहा कृषि प्रधान राज्य पंजाब और हरियाणा में ही भारत बंद का असर 25 सितम्बर को देखने को मिला था.
तेलगु देशम पार्टी और शिव सेना के बाद अकाली दल ऐसा तीसरा दल बना जिसने NDA छोड़ दी. उनके अनुसार ऐसे कृषि विधेयक से किसान अपने भविष्य को लेकर परेशानी का सामना करेगा वही केंद्र सरकार के इस फैसले से आम किसान बड़े पूंजीपतियों के हवाले कर दिया जायेगा.
वही MSP अधिकतम समर्थन मूल्य का उल्लेख नहीं होने को लेकर विपक्ष जहाँ केंद्र सरकार पर लगातार हमलावर है. वही केंद्र सरकार ने भी अपने मंत्रियों को जनता तब अपनी बात पंहुचाने को लेकर उचित निर्देश भी दिए हैं. राजस्थान से किसान आधारित राजनीति में दम ख़म रखने वाले नेता जैसे कैलाश बायतु और हनुमान बेनीवाल जहा अपनी सरकार को बचाते हुए देखे जा रहे हैं.
वही कोंग्रेस अपनी राज्य सभा और लोकसभा में संख्या बल की कमी को ध्यान में रखते हुए वाकआउट कर गई वही अकाली दल द्वारा इस मामले को भुनाए जाने के बाद से सधे हुए रूप से इसे भाजपा को बड़ी चोट दिलाती हुई देखि जा सकती है.